Sunday 17 July 2016

राम जी से विनती



तू तो है भाव का भूखा
मैं रसहीन शुष्क हूँ।
तू पर कातर कृपा पुंज
मैं स्वार्थ में निबद्ध हूँ।
सब हैं जब तेरे अपने
मैं खुद में क्यों निमग्न हूँ।
तू है जब भला भक्त सबका
मैं कहाँ कैसा भक्त हूँ।
हर साँस पर तेरा नियंत्रण
मैं कहाँ करता कुछ कर्म हूँ।
यूँ ही कृपा करते रहना सदा
मैं तो बस तेरा एक क़र्ज़ हूँ। 

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