कारे बदरा देखो झूम रहे गगन में
सबके मन-मयूर नाच रहे धरती में।
प्यासी धरती भी परम तृप्ति की आस में
मुदित बटोरे रजत बूँद अपने आँचल में।
मीन,मकर,जलचर सब अति आनंद में
पशु,पंछी उल्लसित विचर रहे आकाश में।
नौजवान भर रहे स्वप्न नए आगोश में
वृद्ध झाँक रहे पुलकित भीतर अतीत में।
बाल-वृन्द संतुष्ट कागज़ की नाव चलाने में
कृषक व्यस्त हैं स्वर्णिम भविष्य बुआई में।
साधक जीवन कृत-कृत्य चौमासे में
हरी कृपा जब बरस रही उर आँगन में।
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