साईं तुम्हारी कृपा दृष्टि का
यदि मिलता नहीं सहारा।
तो सोचो भला कैसे
मृगतृष्णा भरे जीवन से
मुझ जैसे मूढ़मति को
मिलता कहाँ किनारा।
मन में संशय ,बाहु-विकलता
तिस पर लहरोँ का खौफ बड़ा।
पर तुमने तो कृपा का बेड़ा
मुझको हर बार दिलाया।
मैं तो था बस आँखे मूंदा
श्री चरणों में करके सज़दा।
मेरी कुछ समझ न आया
क्यों,कैसे ये हो पाया।
धन्य-धन्य तुम तो साईं
तेरी कृपा मैं पार न पाता।
किस मुख से मैं करूँ प्रशंसा।
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