इस्लाम क्यों कर दहशतगर्दों का दीने इलाही है बन रहा
मुफलिसी,बेरोज़गारी क्यों नहीं जेहाद का सवाल बन रहा।
हरा तो रंग है हंसी-ख़ुशी ,विकास की बहार का
अज़ान को भला वो फिर रक्तरंजित क्यों कर रहा।
जब है मज़हब इस्लाम अमन, प्यार और वफा का
पेट दाढ़ी ,पैदल दिमाग क्यों बेवज़ह भाव दे रहा।
हाथ मासूम बन्दूक थमा विलायत खुद की औलाद भेज रहा
नामुराद रंगा सियार चुपचाप मुर्ग-मुसल्लम खुद तोड़ रहा।
जमाना बुलंदियां सितारों की चूमने कदम-कदम मिला रहा
फिर क्यों हमारा एक हाथ ही फसल अंगार की रोप रहा।
इंसानियत कलप रही देख नन्हे- नन्हे फरिश्तों का शव
"उस्ताद " हैवान है तू कलेजा मुंह नहीं जो आ रहा।
मुफलिसी,बेरोज़गारी क्यों नहीं जेहाद का सवाल बन रहा।
हरा तो रंग है हंसी-ख़ुशी ,विकास की बहार का
अज़ान को भला वो फिर रक्तरंजित क्यों कर रहा।
जब है मज़हब इस्लाम अमन, प्यार और वफा का
पेट दाढ़ी ,पैदल दिमाग क्यों बेवज़ह भाव दे रहा।
हाथ मासूम बन्दूक थमा विलायत खुद की औलाद भेज रहा
नामुराद रंगा सियार चुपचाप मुर्ग-मुसल्लम खुद तोड़ रहा।
जमाना बुलंदियां सितारों की चूमने कदम-कदम मिला रहा
फिर क्यों हमारा एक हाथ ही फसल अंगार की रोप रहा।
इंसानियत कलप रही देख नन्हे- नन्हे फरिश्तों का शव
"उस्ताद " हैवान है तू कलेजा मुंह नहीं जो आ रहा।
No comments:
Post a Comment