कुरान की आयत का हर हर्फ़ रक्तरंजित हो गया
अल्लाह जाने ये कौन सा अज़ब धर्म हो गया।
दुनिया में जहाँ कहीं देखो बस यही चीख-पुकार
अमन,प्यार, आशनाई का सरेआम क़त्ल हो गया।
रमज़ान का पाक महीना ज़ालिमाना हो गया
इबादतगाह में सज़दा भी अब तो हराम हो गया।
फ़राज़ तेरे सिवा ये आशनाई कौन समझ सका
जाते-जाते भी तू बेधर्मों को बेनकाब कर गया।
यूँ तू हर बात-बेबात अक्सर फ़तवा जारी हो रहा
आतंक के ख़िलाफ़ जुबां को मगर क्यों लकवा पड़ गया।
कौन सावन का अन्धा भला हरा-हरा है देख पाता
वज़ूद ही नहीं अगर "उस्ताद" तो ख़ाक जन्नत हो गया।
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