साईं नतमस्तक हो
तुमसे करता हूँ प्रार्थना
कि जैसे भी हो
साकार करो कामना।
वरना तो कसम से
रहूँगा न घर का न घाट का
जाऊंगा कहाँ भला
कुछ भी तो नहीं पता।
तुम्हारे लिए कुछ नहीं
दरअसल मेरी ये चाहना
जबकि तुम्हारी ही कृपा
मिटाती हर वासना।
चरणाश्रित हमको बना
दूर करो उलाहना
शुद्ध,निष्पाप हो मन सदा
बस यही एक प्रार्थना।
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