दौड़ कर चला आता है ,मददगार बन कर वो ऐसे
खरीदा हुआ दास भी हो जाये शर्मिंदा खुद पर जैसे।
दिलों की हर बारीक धड़कनों पर नज़र है उसकी
सांसों की हर डोर पर सदा चलतींहै मर्ज़ी उसकी।
हर कदम पर साँस जब- जब लडखडाती है हमारी
पेशानी के पसीने को पोछता है वो आकर हमारी।
प्यार का एक अज़ब दरिया बहता है उसके दिल में
हम-सब को मिलता है हर-पल अमृत रस जिस में।
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