बहुत कुछ कहना चाहता हूँ तुझसे मैं
मगर फिर ठिठक कर रुक जाता हूँ मैं।
हज़ारों ख्वाइशों के बिम्ब रोज सजाता हूँ मैं
चौखट पर आ के तेरी सब भूल जाता हूँ मैं।
ये भी तो नहीं कह सकता तुझे चाहता हूँ मैं
अक्सर बहकावों में कितने बहक जाता हूँ मैं।
तेरी सूरत,तेरी सीरत पर क्या कहूँ भला मैं
अभी तो कुछ तुतलालना सीख रहा हूँ मैं।
ये अलग बात है दीदार को तेरे तरसता हूँ मैं
बावला हूँ मगर खुद में न ढूंढ पाऊँ तुझे मैं।
निगाहें-करम मुझ पर बड़ा है जानता हूँ मैं
यूँ ही तो नहीं पंक में खिलता "नलिन" हूँ मैं।
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