बिछड़ के तुझसे बहुत उदास रहा।
जाने फिर क्या यहाँ मैं तलाश रहा।।
कह ना सका चाहे तुझसे मगर।
मेरे लिए तू तो हमेशा खास रहा।।
मिली खुशियाँ उसे थीं ढेर सारी मगर।
बेवजह वो बस हर बात उदास रहा।।
ओढ़ लिबास मुल्क की नुमाइन्दगी का।
सिक्का वो खोटा करता बकवास रहा।।
अपने गुरूर में न बोला मैं, न तो तू ही।
अब भला क्यों खुश्क गला खराश रहा।।
रूठे भी तो,मिल गए गले कुछ देर में।
वक्त ऐसा,बता अब किसके पास रहा।।
वक्त के साथ अब तो लो"उस्ताद"भी।
माशाअल्लाह खुद को खूब तराश रहा।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Friday 30 August 2019
गजल-222 उदास रहा
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