अपनी हल्की-फुल्की रचनाएं जिन्हें फेसबुक पर डालता रहा हूँ उन्हें गजल न कहकर "मजल"कहूँगा क्योंकि ये सिर्फ मजे अर्थात आनन्द हेतु हैं।और गजल लिखने सी आला दर्जे की काबिलियत खुद में पाता भी नहीं हूँ।ईश्वर "रसो वै सः"(तैत्तिरीयोपनिषत्) कहा गया है। रस अर्थात आनन्द स्वरूप सो ये रचनाएं उसके ही प्रसाद स्वरूप लिख पाने से उसे ही समर्पित हैं।☆☆☆
सीखे न थे हमने दुनियावी लटके-झटके।
सो लोग बात-बेबात खूब देते रहे झटके।।
कहना है कब क्या और किस से कितना। जो सीख जाते तो खाने न पड़ते झटके।।
समझते हैं जिनको हम खास अपनों में।
तोड़ दिल हमारा हैं देते वो गहरे झटके।। बकरा बनाने की जुगाड़ में सब हैं दिखते।
किसी को हलाल तो किसी को देते झटके।।
सबको यूँ तो नचाता है वही "उस्ताद" अपना।
मगर निकली आह जब कमर में पड़े झटके।।
@नलिन#उस्ताद
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