जड़े न जमा लूँ गहरे वो ये डरता है।
हर रोज तभी उखाड़ मुझे देखता है।।
जहां गिरता है वो वहीं पनपने लगता है।
जीने का जज्बा उसमें गहरा दिखता है।।
सुनो तो सही जरा दिल से कान लगाकर। कुदरत का पत्ता-पत्ता भी कुछ बोलता है।।
जिंदगी ये तेरी कौन जाने कब तक चले।
प्यार बांटने में भला कहाँ कुछ लगता है।।आँख,जिस्म,रूह सब हरे-भरे हो गए।
हर कदम अब सुकूने झरना बहता है।।
वो मुझे चाहता है इस कदर तहे दिल से।
पल भर नहीं तभी तो अकेला छोड़ता है।।दिखाओ सब्जबाग चाहे दुनिया या जन्नत के।
जमीर से कहां असल"उस्ताद"गिरता है।।
@नलिन#उस्ताद
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