सोचता हूं नाचता फिरूं,मीरा सा तोड़ बंधन जगत के।
मौन हूँ रहता मगर,अधर माया दधि लटपटा के।।
कहो पर कब तक चलेगा,ये सिलसिला प्यार में।
भीतर कोई खींचता वहां,मगर तन है चिपका जहां में।
जो भी हो पर अब,आर-पार की लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी।
कब तक दो नाव की,सवारी भला यूँ चलती रहेगी।।
चलो तन तो कभी,उमर के साथ हो शिथिल, शायद मान भी ले।
ये मन बड़ा पर कमबख्त,कहां कोई इसकी, उड़ान थाह ले।।
बाँधता हूँ,अनुशासन की डोर से तो,ये और उत्पात करे।
छोड़ दूं यदि स्वतंत्र,जाने फिर तो क्या न ये, बवाल करे।।
प्यार से इसलिए अब,इसे बड़ा बहलाता- फुसलाता हूं।
इसे हर हाल,किसी बात पर,वजह-बेवजह उलझाता हूं।।
खाली अगर पड़ा रहा तो,ये मुझे गोल-गोल, चक्करघिन्नी सा घुमायेगा।
जाने कैसे-कैसे,फिर तो ये और भी,दुष्कर्म मुझसे करवाएगा।।
सो इसके रोने-चिल्लाने पर, मैं लापरवाह बना रहता हूं।
इसकी रग-रग में समाए नाटक को,बेहतर जो समझता हूं।।
धीरे-धीरे ही सही,अब मुझे इस पर कसने का नकेल,गुर आ रहा।
इसे भी अब मेरे साथ,कदमताल करने में, मजा आ रहा।।
यूँ तो है लड़ाई लंबी मगर,अब रोचक हो रही।
मुझे भी अब कुछ अपने जीतने की,उम्मीद हो रही।।
@नलिन#तारकेश
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Sunday 21 July 2019
मन बड़ा बांवला
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