कोई क्या बताए तुझे हुस्ने राजदार कहां है।
ऐसा तेरी महफ़िल इल्मे तलबगार कहां है।।
इश्क और हुस्न की किस्सागोई तो आसान है।
खुद की हस्ती मिटा सके वो दिलदार कहां है।।
गिड़गिड़ाते फैला दे जो हाथ सबके सामने।
हो भीख मांगता ऐसा कोई सरदार कहां है।।
दिलों में उतर जाता है जो बंद ऑख में भी।
बता तो सही रब का मेरे इश्तहार कहां है।।
खुशियों तो खिलती हैं गम के दामन ही में।
इस दुनिया में रहती यूं सदाबहार कहां है।।
हूं महबूबा और खुद ही महबूब भी मैं तो।
भला मुझको किसी की दरकार कहां है।। बहा कर दर्द सबने मुझे खारा है कर दिया।
बनने से मगर मुझे समन्दर इंकार कहां है।।
हर कोई रोएगा"उस्ताद"की चौखट ही तो।
दरिया को हरेक पता है जलागार* कहां है।।
*समुंद्र।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday 29 April 2019
132-गजल
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