हलक में अभी भी कुछ फॅस रहा है।
झूठ बोलना नया-नया डस रहा है।।
जो शुमार ही हो जाएगा आदत में झूठ।
बला से तब मेरी कौन जो हंस रहा है।।
स्याह-सफेद मोहरें हैं हम सभी तो यहां।
नसीब तो सबका सदा परबस रहा है।।
होगा शानोशौकत का अम्बार रंगरेलियों को।मजलूम तो निवाले को फकत तरस रहा है।।
चलाना पड़ता है चप्पू नाव खेने के लिए।
भंवर तो अपने मिजाज से बेबस रहा है।।
कौन दूर,कौन करीब इस जमाने में नए।
नाम का"उस्ताद"सबसे बस रिश्ता रहा है।।
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