सुबह को रोकने की हर कवायद*हो रही।*प्रयास
मजलिस*उल्लूओं की सूखे बरगद हो रही।।
*सभा
फूल खिले हैं अभी-अभी जो महकने को।
कांटो को चूमने की उनसे खुशामद हो रही।।
सफेद पैरहन*वो जितना सजे-संवरे दिख रहे।*लबादा/परिधान
उनकी रूहे वजाहत*उतनी ही नदारद हो रही।।*महानता
फुंकारते हैं जो हमारी सदा आस्तीन बैठकर। दुश्मनों को बड़ी उससे गद्दार मदद हो रही।।
है औंधी खोपड़ी जहर से भर छलछलाती।
बेशर्मी की अब पार उस्ताद हर हद हो रही।।
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