चुनावी ग़ज़ल
दौड़ती सड़कों ने हमें बहुत भरमाया है। मंजिलों को सदा पगडंडियों से पाया है।।
जो मानते रहे उसे दिल से अपना खुदा। दरअसल उसी ने आज उनको रुलाया है।। अभी जो मान-मनौवल में दिखते हैं चौखट तुम्हारी।
याद रखना सदा इन्होंने ही तुम्हें अंगूठा दिखाया है।।
सूअर का बाल रहा है आंखों में उसकी।
आईना तभी तो उसे सबने दिखाया है।। अब ना गलेगी यहां दाल तुम्हारी "उस्ताद"।
बखूबी देर सही सबको समझ ये आया है।।
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