हाथों की लकीरों में तुझे जो सहेजना आता।
भला क्यों हमारे नसीब में ये भटकना आता।
हर तरफ है चाहतों का अंबार खड़ा।
काश हमें भी चादर ये समेटना आता।
फिसलती नहीं ये जिंदगी पारे की तरह।
तिनके-तिनके जो यार सहेजना आता।।
तुझमें-मुझमें थी भला दुश्मनी कहां।
दीगर ये बात अगर समझना आता।।
तोड़े जो हाथ उसकी भी हथेली पर।
गुलों को तो बस एक महकना आता।।
गरीब कहां वो तो है शहंशाहों का राजा।
भूखे पेट जिसे बांटना निवाला आता।।
असल"उस्ताद"तो वही है हुजूरे आला।
गमों के सैलाब है जिसे चहकना आता।।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday 23 April 2019
127-गजल
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