कोई क्या बताए तुझे हुस्ने राजदार कहां है।
ऐसा तेरी महफ़िल इल्मे तलबगार कहां है।।
इश्क और हुस्न की किस्सागोई तो आसान है।
खुद की हस्ती मिटा सके वो दिलदार कहां है।।
गिड़गिड़ाते फैला दे जो हाथ सबके सामने।
हो भीख मांगता ऐसा कोई सरदार कहां है।।
दिलों में उतर जाता है जो बंद ऑख में भी।
बता तो सही रब का मेरे इश्तहार कहां है।।
खुशियों तो खिलती हैं गम के दामन ही में।
इस दुनिया में रहती यूं सदाबहार कहां है।।
हूं महबूबा और खुद ही महबूब भी मैं तो।
भला मुझको किसी की दरकार कहां है।। बहा कर दर्द सबने मुझे खारा है कर दिया।
बनने से मगर मुझे समन्दर इंकार कहां है।।
हर कोई रोएगा"उस्ताद"की चौखट ही तो।
दरिया को हरेक पता है जलागार* कहां है।।
*समुंद्र।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday 29 April 2019
132-गजल
131-गजल
तुम बिन ये दिन तो गुजरता नहीं है।
उजाला अब आंगन चहकता नहीं है।।
रात हो कि सुबह ये सब जान रहे।
वक्त किसी को यहां पूछता नहीं है।।
खुद ही बना ले जो बन्दा अपनी हजामत।
वक्त के किसी दौर से वो तो डरता नहीं है।।
बढती उमर के साथ जोश वही है उसका।
शौक के आगे वो किसी की सुनता नहीं है।।
पीयें है इतनी कसम से "उस्ताद" जी।
कदम हमारा तो अब बहकता नहीं है।।
नलिन@उस्ताद
Sunday 28 April 2019
130-गजल
पारस की तरह आज उसने जो छू लिया है।
सराबोर रोशनी से पूरा मुझको किया है।।
हर सांस पर मरना और हर सांस पर जीना।
खुदा ने भी क्या अजब फलसफा दिया है।।
उसे तो है फिकर मेरी मुझसे भी ज्यादा।
तभी तो अपना उसे बनाया औलिया है।।
कड़ी धूप गुनगुनाते जो चला जा रहा।
लोग कहते हैं उसको ये पागल पिया है।। शोहरत की बुलंदियां पल में दिलाता है जो।
रसिकों का वो यार मेरा बड़ा ही रसिया है।।
आसां नहीं उसकी चौखट पर सजदा करना।
वो तरसाता दीदार को अपने तो छलिया है।।रोको ना उसे पांव में जंजीर डाल के यारों।
वो तो बहता हुआ एक मौजों का दरिया है।।
लो आज तो गजब हो गया उस्ताद देखो।
पहली बार जो उसने पहलू बैठा लिया है।।
Saturday 27 April 2019
129-गजल
उमर हो गई फिर भी मासूमियत रही।
जिंदगी की असल ये सलाहियत रही।।
जलना तो शमां की सदा से आदत रही।
बेवजह मगर उस पर यही तोहमत रही।।
दोगेअगर प्यार तो मिलेगा खुद-ब-खुद। दुनिया की पुरानी ये तो रवायत रही।।
कीचड़ में दागे दामन बचा के खिलना।
यही तो यार नलिन की खासियत रही।।
खुदा का शुक्र मना वो जो आए मिलने।
वरना नेता में कहां इतनी शराफत रही।।
लबों से जो उन्होंने हमारा नाम ले लिया।
हुजूर उस्ताद की गजब ये इनायत रही।।
नलिन@उस्ताद
Thursday 25 April 2019
128-गजल
लिखने को गजल पड़े जागना रात-रात भर।
समंदर भी दर्द का पड़े डूबना रात-रात भर।
बाॅहों में भरता है मुहब्बत का जायका वही।
जो पीता है आशिक यातना रात-रात भर।।
अंधेरों में दिखे बांटता वही चराग रोशनी।
तन-मन जलाए जो अपना रात-रात भर।।
बुझ गई लो ये शमां बेवफा के इंतजार में।
संजोया था इसने भी सपना रात-रात भर।।
कतई आसान नहीं डगर पनघट की उस्ताद।
करना पड़े आईने का सामना रात-रात भर।।
Tuesday 23 April 2019
127-गजल
हाथों की लकीरों में तुझे जो सहेजना आता।
भला क्यों हमारे नसीब में ये भटकना आता।
हर तरफ है चाहतों का अंबार खड़ा।
काश हमें भी चादर ये समेटना आता।
फिसलती नहीं ये जिंदगी पारे की तरह।
तिनके-तिनके जो यार सहेजना आता।।
तुझमें-मुझमें थी भला दुश्मनी कहां।
दीगर ये बात अगर समझना आता।।
तोड़े जो हाथ उसकी भी हथेली पर।
गुलों को तो बस एक महकना आता।।
गरीब कहां वो तो है शहंशाहों का राजा।
भूखे पेट जिसे बांटना निवाला आता।।
असल"उस्ताद"तो वही है हुजूरे आला।
गमों के सैलाब है जिसे चहकना आता।।
126-गजल
लो उमर बढ़ने के साथ ही शबाब आ गया।
जो घटी तो फिर रब का जवाब आ गया।।
काली जुल्फों का जादू कुछ यूं समझिए जनाब।
असल में अब उनके पास नया खिजाब आ गया।।
सवालों पर मेरे था जो अचकचाया हुआ।
लेकर जवाब वो मेरी ही किताब आ गया।।
जब से बना वो वजीरे आलम मुल्क का। तब से असल में यहां इंकलाब आ गया।।
खबर थी किसे बदलेगी किस्मत कुछ यूं।
कड़ी धूप वो लिए आज गुलाब आ गया।
जिस्म की झील में खिल गए हजारों नलिन*।*कमल
दिले आसमां जो खुदाई आफताब* आ गया।।*सूरज
रगड़ी जो एड़ियां"उस्ताद"अलैहीसलाम ने अपनी।
फजले खुदा रेत में जमजमे-आब* आ गया।।*मक्का का पवित्र पानी
Monday 22 April 2019
विश्व पृथ्वी दिवस पर
विश्व पृथ्वी दिवस पर
धरती हमसे पूछ रही है
मेरे प्यारे-प्यारे बच्चों
और बताओ,करोगे कितना
मुझ पर भला तुम अत्याचार।
मैंने तो तुमको अपनी सांस-सांस
सुविधाएं दीं,जाने कितनी ढेर-अपार।
पर तुम तो अपनी रौ में बहकर
खून चूसते बस मेरा ही,बारम्बार।
पशु-पक्षी और कीट-पतंगे
पवॆत-जंगल,नदी और झरने
किसको मानव तुमने छोड़ा
करने से प्रतिदिन अनाचार।
अब कर सकते हो तो करो विचार
कैसे कराऊं तुम्हें मैं दुग्धपान।
वक्ष मेरा हुआ जब लहुलुहान
सो पाती हूं खुद को,बड़ा लाचार।
यही सोच मैं व्यथित बड़ी हूं
ऑचल किया क्यों तुमने मेरा
बोलो बच्चों सब तार-तार।।
Sunday 21 April 2019
125-गजल
रंगीन सपने यूं तू देखना हर रोज।
जमीं मगर पांव रखना हर रोज।।
मुश्किल नहीं है कुछ भी तो यहां।
बस ये ठान कर चलना हर रोज।।
कोई चाहे तुझे या ना चाहे।
खुद को तू चाहना हर रोज।।
मंजिल तो आयेगी चलकर तेरे पास।
बस अपनी ताकत झोंकना हर रोज।।
खुदा की मेहरबानी सब पर है बराबर।
ये दिल से तू मान के चलना हर रोज।।
उस्ताद तुझमें,मुझमें फर्क है नहीं।
आंखों से रूह की देखना हर रोज।।
124-गजल
इश्क में तेरे अब ये मुकाम आ गया है।
जुबां हर सांस तेरा नाम आ गया है।।
सुबह है या शाम किसको भला होश है।
निगाहों में तेरा जबसे चेहरा आ गया है।।
तसव्वुर की बात नहीं हकीकत में।
मुझे आज तेरा पैगाम आ गया है।।
दुआ कबूल हुई जब इतनी जल्दी।
हाथों में लगा भरा जाम आ गया है।।
हैं कदम अपने सातवें आसमान आज तो। लबालब प्यार का जो कलाम आ गया है।। दिखी जो तस्वीर दिले आईने में उनकी।
तबीयत को अपने आराम आ गया है।। "उस्ताद"चिराग ये अपना बेखौफ बुझ रहा।
नूरे सवाब का जो इसका ईनाम आ गया है।।
Thursday 18 April 2019
123-गजल
कहीं ना कहीं तो दिल लगाना पड़ता है। वरना तो ये और-और बड़ा भटकता है।।
सुबह शाम बेबात रोज उसको ही गाली। कहो ऐसे भी कहीं कोई देश चलता है।। घोटालों के जब तुम रहे हो सदा सरताज।
खरी-खोटी तुम्हें सुनाना तो यार बनता है।।
पलक-पांवड़े उसके हर कदम दुनिया बिछा रही।
क्या गैर हो जो अभिनंदन उसका खटकता है।।
तरक्की का परचम लहराने लगा अब तो गांव-गांव।
रकीब हो क्या जो तुम्हें फिर भी वो अखरता है।।
"उस्ताद"सच तो ये है कि मुल्के-माटी से तुम्हें प्यार नहीं।
तभी तो तुम्हें दरअसल चौकीदार बड़ा खलता है।।
122-गजल
हलक में अभी भी कुछ फॅस रहा है।
झूठ बोलना नया-नया डस रहा है।।
जो शुमार ही हो जाएगा आदत में झूठ।
बला से तब मेरी कौन जो हंस रहा है।।
स्याह-सफेद मोहरें हैं हम सभी तो यहां।
नसीब तो सबका सदा परबस रहा है।।
होगा शानोशौकत का अम्बार रंगरेलियों को।मजलूम तो निवाले को फकत तरस रहा है।।
चलाना पड़ता है चप्पू नाव खेने के लिए।
भंवर तो अपने मिजाज से बेबस रहा है।।
कौन दूर,कौन करीब इस जमाने में नए।
नाम का"उस्ताद"सबसे बस रिश्ता रहा है।।
Wednesday 17 April 2019
121-गजल
चुनावी ग़ज़ल
दौड़ती सड़कों ने हमें बहुत भरमाया है। मंजिलों को सदा पगडंडियों से पाया है।।
जो मानते रहे उसे दिल से अपना खुदा। दरअसल उसी ने आज उनको रुलाया है।। अभी जो मान-मनौवल में दिखते हैं चौखट तुम्हारी।
याद रखना सदा इन्होंने ही तुम्हें अंगूठा दिखाया है।।
सूअर का बाल रहा है आंखों में उसकी।
आईना तभी तो उसे सबने दिखाया है।। अब ना गलेगी यहां दाल तुम्हारी "उस्ताद"।
बखूबी देर सही सबको समझ ये आया है।।
120-गजल
जुदा होकर जो सदा रूह मेरी बसता रहा।
सदा आंख उसके लिए मोतियां गुंथता रहा।।
फासले हैं यह मानोगे तो वो तो रहेंगे ही यार मेरे।
कदम बढ़ाने से मगर फासला कहां बढता रहा।।
जब रुसवाईयों की बारात ही सज-धज के हो चल रही।
महज कानाफूसियों को देना इल्जाम किसे पचता रहा।।
सियासत की इस शतरंज का कमाल तो देखिए हुजूर।
नवाबों के खेल में शह-मात से गरीब पिसता रहा।।
बूढ़ा बरगद बचा है जो कंकरीट के जंगल में एक अदद।
वो बिचारा भी सदा परिंदों की आवाज को तरसता रहा।।
मासूम पुतली आंख की पलकों में कैद हो रह गई।
खुले आकाश मगर वो गिद्ध वहशी उड़ता रहा।।
"उस्ताद"सजदा तो तुमने किया और हमने भी किया।
हां,इबादत के सलीके में जरूर फर्क पड़ता रहा।।
119-गजल
सुबह को रोकने की हर कवायद*हो रही।*प्रयास
मजलिस*उल्लूओं की सूखे बरगद हो रही।।
*सभा
फूल खिले हैं अभी-अभी जो महकने को।
कांटो को चूमने की उनसे खुशामद हो रही।।
सफेद पैरहन*वो जितना सजे-संवरे दिख रहे।*लबादा/परिधान
उनकी रूहे वजाहत*उतनी ही नदारद हो रही।।*महानता
फुंकारते हैं जो हमारी सदा आस्तीन बैठकर। दुश्मनों को बड़ी उससे गद्दार मदद हो रही।।
है औंधी खोपड़ी जहर से भर छलछलाती।
बेशर्मी की अब पार उस्ताद हर हद हो रही।।
Wednesday 10 April 2019
गजल-118 ख्वाबों के परिंदे
ख्वाबों के परिंदे तो ऊंची उड़ान भरते रहते।
लगते खूबसूरत अगर नीड़ भी सहेजते रहते।।
उजालों में ही नहीं कोई मिला साथ हमारे चलने वाला।
बता फिर किसे रात की चौखट याद करते रहते।।
आवारा बादल अपनी मस्ती में झूमते सदा।
है दिल करता जहां बस वहीं बरसते रहते।।
आसान रास्ते पर तो सभी चलते दिखें सुकूं में।
कीचड़ में भी मगर नलिन खिले दिखते रहते।।
यह दुनिया बड़ी बेगैरत बेवफा मशहूर है यार।
हौसला देखिए हम हैं मगर डोरे डालते रहते।।
तुम ना मिलो चाहे कभी प्यार भरी अंदाज से।
इंकार को भी हम तुम्हारे इकरार मानते रहते।।
हुस्नो जमाल तेरा गजब कमाल का है या खुदा।
सजदे बड़े-बड़े "उस्ताद"भी तुझे करते रहते।।
जब तुम मिलोगे
जब तुम मिलोगे
तो कुछ ना कहेंगे
क्योंकि कहने से
कहां शब्द भी
बयां कर पाते हैं
पूरी हकीकत
और अगर
कहीं सफल हो भी जाएं
तो भी जरूरी नहीं
अर्थ वो वैसा ही
दिल में तुम्हारे
उतार पाएंगे
अतः मौन ही रहेंगे
दो दिलों को
बस धड़कने देंगे।।
कहां रहते हो आजकल
कहां रहते हो आजकल
जनाब कुछ तो कहो हाल
इतने मशरूफ कहां हो?
जरा बताओ हमें भी तो यार।
दौलत-शोहरत तो कमा ली
पता है,तुमने अपार।
पर कहो हिम्मत कैसे करेगा
कोई भी तुमसे बात की सरकार।
तुमने तो चश्मा लगा लिया है
आंखों में अपनी घोड़े का चश्मा।
अब तुम्हें जरा भी नहीं भाता
एक पल को ठहरना/व्यथॆ गंवाना।
बस दौड़ते रहना,यहां से वहां
एक नया झंडा गाड़ आना।
झील,उपवन,पहाड़,चांद-सितारे
देखने की फुसॆत तुम्हारे पास कहां।
सो यही कहूंगा,खुदा के वास्ते
थोड़ा तो रहम खाओ,खुद पर
जहां-जहां झंडे गाड़े हैं तुमने
उस जमीं को भी तो जरा
चूम,थपथपा,सहला आओ।
वो दरअसल और कुछ नहीं,बस
आंचल की हवा करना चाहती है।
बहुत थक गए होगे सोचकर
तुम्हारा पसीना पोंछना चाहती है।
थोड़ी देर ही सही तुमसे प्यार से
बतियाना/लाड़-लड़ाना चाहती है।
Monday 8 April 2019
वो जिसे हम पसन्द करते हैं
वो जिसे हम पसन्द करते हैं
वो पात्र,घटना,स्थिति
हमसे ज्यादा देर तो नहीं
खेल सकती आंख मिचौली
उसे तो साकार होना ही होता है
वाकई ये बात हंसी ठठ्ठा नहीं
पत्थर की लकीर ठहरी।
हां बस शतॆ है इतनी ही
पसन्द हमारी होनी चाहिए
पूरी शिद्दत से, दिल से
ठोस,भरी-पूरी।
Friday 5 April 2019
117-गजल
खुद पर हो यकीं तो इल्जाम मढे नहीं जाते। सहारे किसी के भी शिखर चढ़े नहीं जाते।।
कहे लाख कितना ही वो तुमको अपना।
गले कभी मरे सांप भी जड़े नहीं जाते।।
आंखों में तेरे कुछ सपने होने चाहिए।
बिना बुनियाद के मकां गढे नहीं जाते।।
रिश्तों को जीना हो अगर सुकूं से।
गड़े मुर्दे कभी उखाड़े नहीं जाते।।
बैठक में हाकिम की हंसी ठठ्ठा करें जो।
वो चाहे हों गुनाहगार पकड़े नहीं जाते।।
प्यार तो है निहायत खूबसूरत सी शै।
जताने को उसे कलाम पढ़े नहीं जाते।।
झड़ चुके हैं जिनकी खोपड़ी से सारे बाल।
उस्ताद कंघे से बाल उनके कढे नहीं जाते।।
Thursday 4 April 2019
भारतीय नववर्ष का श्रीगणेश
6April 2019 भारतीय नववर्ष का श्रीगणेश
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भारतीय संस्कृति के उन्नत ललाट पर चंदन- वंदन हो रहा।
शुभागमन नव-संवत परीधावी का अभिनंदन हो रहा।।
रितु वसंत कलरव कर रही वन-उपवन डाली डाली।
मार्तंड मीन राशिचक्र सजग,सज्ज नवसृजन हो रहा।।
ध्वज-पताका केसरिया फहर रही मन-मंदिर के धवल शिखरों पर।
देखो वीणा के तारों पर उल्लासित मृदुल-मदिर आचमन हो रहा।।
जन-जन नव परिधान आकंठ मगन नवरंग अद्भुत कुसुम खिले।
पथ सजे बंदनवार,गली-गली सुगंधमय गुलशन हो रहा।।
नृप शनि,मंत्री रवि,सस्येश मंगल बन नवग्रह स्वभूमिका ले रहे।
देश-विदेश काशी से क्योटो तक नमो-नमो हर घर-आंगन हो रहा।।
सबका साथ-सबका विकास,निर्मल "नलिन" शुभ्र खिलने लगा।
नामुमकिन था जो रामराज्य कलियुग भी वो
अब मुमकिन हो रहा।।