Monday 30 October 2017

"उस्ताद"राम के भरोसे हम नाव खेते हुए

रदीफ,काफिया न मिलाओ जिन्दगी जीते हुए
हॅसो,हॅसाओ बस सुकून से जीते हुए।

कड़ी धूप हो,बरसात या हो ठिठुरन बड़ी
मौज में चलते रहो हर कदम बढते हुए।

जो है जैसा वैसा ही रहने दो उसके हाल में
खुदा ने सोचा तो होगा उसको गढते हुए।

बिन्दास,बेझिझक जिन्दगी के कैनवास में
भर दो हकीकते रंग ख्वाब हर सजाते हुए।

अब इसलाह क्या कब्र में पाॅव रखते हुए
भरोसे राम के हम तो नाव खेते हुए।

देखा जो अक्स एक रोज खुद का आईने में
"उस्ताद" पगला गया कलाम लिखते हुए।

जाने क्यों उसे वो"उस्ताद"कहता रहा

इशरतगाह जो गौरा-शिव का होता रहा
खाकसार वही तेरा पुरखाई ठौर होता रहा।

जाड़े की सौंधी-सौंधी पहाड़ की धूप में
सना नींबू दही कमाल खूब करता रहा।

आड़ू,खुमानी,काफल भर जेब खाते हुए
चढना पहाड़ राई-रत्ती न खलता रहा।

बुरांश,मोनाल,ब्रह्मकमल यहाॅ का दाज्यू
कस्तूरी-मृग सा सदा सरताज रहता रहा।

सीधा,सरल मगर पहलवान भीम सा
डोट्याल यहाॅ मददगार मिलता रहा।

रंगों की असली छटा तो यहीं है बिखरी हुई
घोल रागों में होली सब पर छिड़कता रहा।

शाम को एक चक्कर लगा जो बाजार का
हर शख्स खुलकर सबसे मिलता रहा।

इल्म में जो सदा का जाहिले सरताज है
जाने उसे क्यों वो"उस्ताद"कहता रहा।

Sunday 29 October 2017

थोड़ा हंसो थोड़ा हंसाया करो

थोड़ा हंसो,थोड़ा हंसाया करो
जिन्दगी के गीत भी गाया करो।

रास्ते सपाट,उबड़खाबड़ कभी
हार कर न यूं हार जाया करो।

देखने चाॅद,सूरज,बादल,सितारे
छत पर कभी टहल आया करो।

कुछ तो होगी तुममें भी खासियत
सोचो नहीं बस डूब जाया करो।

हम आए थे जहां में रोते हुए
हर घड़ी ये न जताया करो।

फूल देखो खिल के,बिखर जाते
तुम भी महक छोड़ जाया करो।

तन्हा-तन्हा है हर"उस्ताद"यहाॅ
ख्वाब हर पलक सजाया करो।

Saturday 28 October 2017

दौरे उस्ताद का जिक्र जितना करें वो कम है

वो फड़फड़ाता तो बहुत है फलक में उड़ते हुए
ऑखों में बसा है एक सपना उसके उड़ते हुए।

गजल कुछ लीक से अलग हटकर जो लिख रहा हूॅ
सोचा तुझे आगाह कर दूॅ इससे पहले मिले तू
पढते हुए।

काबिलियत पर हमारी जरा भी न हैरान हों हुजूर
कैंची भी चलायी बहुत हमने साईकिल चलाते हुए।

चिटकन,कुंडी होती नहीं थी पहले आशियानों में
रोकते थे किसी को"बड़े घर" बस खाॅसते हुए।

तकियाकलाम हो आदत या अदा बेजोड़ किसी की
बुलाते रहे बस उसी नाम सब उसे चिढाते हुए।

कंचे,लूडो,पतंग और कबूतरबाजी के शौक सारे
भूले न भुलाए जाते बुढापे में कदम रखते हुए।

दौरे"उस्ताद"का जितना करें जिक्र कम होगा
बहुत थे तब खलील खाॅ फाख्ते उड़ाते हुए।

Friday 27 October 2017

श्रद्धा-सबूरी की समझ "उस्ताद"होनी चाहिए

असल इबादत में रुमानियत होनी चाहिए
खुदा के वास्ते दिल में पीर होनी चाहिए।

दिल खोल बेझिझक बगैर लाग-लपेट के
बड़े इतमीनान उससे बात होनी चाहिए।

वो तो हंसता है हमारे ही होंठों से सदा
कोई रोनी सूरत उसे न दिखनी चाहिए।

हर तरफ बिखरा है मेरे हुजूर का ही नूर
बस इश्क में सराबोर ऑख होनी चाहिए।

दलील,तफतीश से कहाॅ पाओगे भला उसे
थोड़ी श्रद्धा-सबूरी"उस्ताद"होनी चाहिए।

गजल-95 बहुत दूर "उस्ताद"खोजने की है क्या जरुरत कहो

अजब है जल्दबाजी दौड़ मंजिल चूमने की।
हद है मगर इल्म नहीं असल राह पकड़ने की।

तेज चमकता सितारा जो लुभाता हमें दूर से।
मुक्कमल कोशिशें ना की कभी उसे पुकारने की।।

प्यार,मौज,दोस्ती,खुशी हैं सभी चाशनी एक तार की।
जद्दोजहद हमने की भला कब कहो इनमें डूबने की।।

सच को बदनाम करने की कर रहे वो साजिशें।
ये भी है एक तरकीब मुफ्त नाम बटोरने की।।

बहुत दूर "उस्ताद"खोजने की है क्या जरूरत कहो।
चाहत हो अगर हममें खुद को शिद्दत से कबूलने की।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday 25 October 2017

बनारसी घराने की गिरिजादेवी

बनारस की मस्ती अपनी गायकी में गजब घोली।
ठुमरी,कजरी,टप्पा,चैती में"अप्पा" क्या खूब बोलीं।।

संगीत की विरासत लिए सारे जहाॅ खुश्बू बिखेरी।
अपनी जिंदादिली,फकीराना तबीयत से खूब हंसी फेरी।।

वो गातीं तो महफिल खुद पर खूब रश्क करती।
बनारसी घराने की अनमोल शैली हर दिल बसती।।

पान बीड़े सजे सुखॆ होंठों से जो मधु अलाप लेतीं।
नर,गंधवॆ,देव सभी को मंत्रमुग्ध पल में कर देतीं।

वो बिछुड़ गयीं हमसे भला कौन घड़ी विश्वा करेगी।
सुरमहिषी गिरिजादेवी की वाणी क्या युग-युग भूल सकेगी।।

Tuesday 24 October 2017

श्रीराम नाम से

श्रीराम नाम से अनुप्राणित है जब यह सारी सृष्टि।
फिर क्यों हम नहीं करते श्री चरणों में सुमन वृष्टि।।

दो अक्षर र,म के मिलने से बनती है अद्भुत शक्ति।
हो समपॆण पूरी निष्ठा से तब मिलती है राम भक्ति।।

सिय राममय सब जग की जब होती है सच्ची अनुभूति।
माया के बंधन खंडित होते हैं सब संग होती प्रीति।।

राम-राम,सुमिर-सुमिर जीवन की सद् गति होती।
दुलॆभ मानव देह की सच्ची,सफल यह परिणति।।

Wednesday 18 October 2017

#रामराज्य का शंखनाद

समग्र राष्ट्र की सुषुप्त चेतना को पुरजोर अंततः 
देदीप्यमान एक योगी ने झंझोड़ जाग्रत किया। 
सरयू तट पुनीत,पुरातन बसी नगरी एक बार पुनः
पुनर्जागरण का अविस्मरणीय शंखनाद किया। 
प्रतीक्षारत,व्याकुल युगों से समस्त प्रजाजन हितार्थ 
जनप्रिय श्रीराम को वनवास से सादर बुला लिया। 
कलियुग,घोर-तमसाच्छादित वातावरण फिर इस तरह  
सभ्यता,संस्कृति,संस्कार का सब जन दृढआश्रय दिया।
कीर्तिमान गढ़ती प्रखर पंक्तिबद्ध दीपज्योति मध्य 
त्रेता रामराज की पुनर्प्रतिष्ठा का अटूट संकल्प लिया।
सज गयी नववधू सी प्रतापी रघुकुल सूर्यवंशी नगरी 
अद्भुत,आह्लाद,सद्भाव रंग खिला उर "नलिन"सभी।
अभ्युदय होगा अब कहोभला  किंचित प्रश्न रहा कहाँ 
जन-जन होगा भाग्योदय भला संशय अब जरा कहाँ। 
नूतन बयार जो बहने लगी इंद्रप्रस्थसे अब दस दिशा 
सबका साथ-सबका विकास होगा चरितार्थ शीघ्र यहाँ। 

  
  
  

Tuesday 17 October 2017

सच ही बोलता हूँ मैं ऐसा दावा तो नहीं है

सच ही बोलता हूँ मैं ऐसा दावा तो नहीं है
झूठ मगर सच सा बोलने की आदत नहीं है।

मसीहा खुद ही अपने को बताता रहा जो
घर के चरागों में तेल लेकिन डालता नहीं है।

जाने किस मिट्टी का बनाया खुदा ने उसे
अपनी ही बातों में खरा वो उतरता नहीं है।

ये चाॅद,ये नदी,ये हवा,ये मौसम कायनात के
घड़ीभर कभी कोई थककर रुकता नहीं है।

दिवाली क्या खाक मनायेगा भला संगदिल
रूहे जज्बात से जिसे कोई वास्ता नहीं है।

"उस्ताद"जाने क्या कशिश है उसकी नजर में
वो जिन्दा को कभी मुरदा रहने देता नहीं है।

Thursday 5 October 2017

पंचतत्वी देह में अद्भुत संघात हुआ

पंचतत्वी देह में अद्भुत संघात हुआ।
घटाटोप माया का पूणॆ ही विनाश हुआ।।
मन-प्राण समिधा में बुद्धि का भी लोप हुआ।
ज्ञान भस्मीभूत हुआ ऐसा चमत्कार हुआ।।
मूल के आधार में शक्ति स्रोत जाग उठा।
तन्द्रा का नाश हुआ तेज का प्रवाह उठा।।
साधना और साधना में ओंकार का ध्यान हुआ।
स्थूल निरविकार हुआ सूक्ष्म का विस्तार हुआ।।
आज से ही जीवन में नया एक अध्याय हुआ।
चित्त भी शांत हुआ और जन्म ये सुकाथॆ हुआ।।
मेरु के सरोवर में अप्रतिम नील हंस आ गया।
डमरू आप अलाप उठा रोम-रोम खिल गया।।
त्रिनाड़ी लोक में शिवोहम् का जाप हुआ।
काया को विराम मिला आत्मा का मोक्ष हुआ।।
ब्रह्म के रन्ध्र में "नलिन"प्रस्फुटित हुआ।
नाद का निनाद हुआ ब्रह्म-साक्षात हुआ।।


Wednesday 4 October 2017

गंगा,यमुना,कावेरी अविरल बहें नदियां सभी


गंगा,यमुना,कावेरी अविरल बहें नदियां सभी 
आओ लें संकल्प तन-मन से आज हम सभी। 
नदियां,पर्वत,जंगल,मैदान धरती पर जितने सभी 
प्राणों का प्रवाह करते हैंजनमानस में मिल सभी। 
जहाँ-जहाँ नदियों की अमृत रसधार है बहती 
खिलखिलाती हरियाली समृद्धि की नित बहती। 
कूड़ा,कचरा,मल,मूत्र जो गिरता है इनमें सभी 
रोक यदि हम इसको लेंगे तो होंगी जवान सभी। 
घाट-घाट सुंदर होँगे और वातावरण सब ओर सुखी  
बज उठेंगे जन-मन-गन के तार सब ह्रदय रहें सुखी।
आओ फिर क्यों विलम्ब करें श्री गणेश करें हम सभी 
जीवनदायी नदियों की रक्षा करना कर्तव्य पुनीत सभी।   
  

Tuesday 3 October 2017

चाँद,तारे लगा लेने से झंडे को बुलंदी नहीं मिलती


चाँद,तारे लगा लेने से झंडे को बुलंदी नहीं मिलती
ग़ैरत,इमान,भाईचारा हो अगर हार नहीं मिलती।

तू लूट,आतंक का अक्स बन कर बस रह गया
तोहमत दूसरों पर थोपने से राह नहीं मिलती।

जाने किस ज़माने में बाबा आदम के रह रहा तू
तेरे जैसे कमज़र्फ़,धूर्त की मिसाल नहीं मिलती।

हम चाँद पर जा के आ भी गए बड़े एहतराम से
जमीं पर रहने की तुझे सलाहियत नहीं मिलती।

पाकिस्तान को तूने तो बना दिया आतंकिस्तान
चोरी,सीनाजोरी की मक्कारी ऐसी नहीं मिलती। 

"उस्ताद"अभी भी वक्त पड़ा है अमन चैन का
हमारी काट यूँ कहीं दुश्मनी में नहीं मिलती।     

नोटों का जखीरा कातते चरखा चुप रहा

नोटों का जखीरा कातते चरखा चुप रहा
गाॅधी भी मगर जेब में तुड़ा-मुड़ा चुप रहा।

किताबें पढ़ उसे इतनी जेहनीयत आ गयी
झूठ का वो नंगा नाच देखकर भी चुप रहा।

खादी में खांटी नेता छिछोरेपन में आ गया
भारत का आवाम मगर हताश हो चुप रहा।

चेहरे पर मुखौटे लगा सूरत बदल लेता है
तेवर आदम के देख गिरगिट बस चुप रहा।

जो सिखायी तालीम शागिर्द उसे भूल गया
"उस्ताद"नयी रवायत पर भौचक चुप रहा।

Monday 2 October 2017

जुगत जद्दोजहद से निजात की पता हो गयी

जुगत जद्दोजहद से निजात की पता हो गयी
राम-राम रटने से कश्ती अपनी पार हो गयी।

हर सांस जब चलती उसके रहमो करम से
गुरूरे इल्म की क्यों भला आदत हो गयी।

कुछ दस्तूर जमाने में अब हैं नये चल गये
हाथ मिला घोंपना छूरे बात आम हो गयी।

ये नेकी-बदी जो लगती हमको किसी की
इनायत-बेअदबी खुदाए फरमान हो गयी।

भुला के भी तो उसको भुला सकता नहीं
कमबख्त तस्वीरे रब दिल में चाक*हो गयी।

सुनी दिले धड़कन"उस्ताद"जिसने कभी
इबादते अमन तालीम उसकी पूरी हो गयी।

चाक*:दृढ

Sunday 1 October 2017

तसबीह फेरते-फेरते मुद्दत हो गयी

तसबीह फेरते-फेरते एक मुद्दत हो गयी
तू न मिला जाने कैसी तकदीर हो गयी।

जमाने के दस्तूर भी कमबख्त अजब हैं
निभाते-निभाते मगर कुछ देर हो गयी।

तकदीर में था बदा शायद वो मेरे लिए
आज उससे तभी तो ऑखे चार हो गयी।

गुपचुप लिखी थी चिठ्ठी जो उसके लिए
वो आॅखों में पढ़कर उसे मीरा हो गयी।

वो बेवफा नहीं यकीं है अब तो पूरा मुझे
"उस्ताद"मनाऊॅ सौ बार ये आदत हो गयी।

हिन्दी का कमॆकान्ड हर साल हो रहा

हिन्दी का कमॆकान्ड तो हर साल हो रहा
बाजार मगर अंग्रेजी का बम-बम हो रहा।

गिटपिटाना नवजात अब घुट्टी में पी रहा
मादरे जुबाॅ का मगर पुरसा हाल हो रहा।

बुद्धिजीवी हर कोई बेभाव बिकने लगा
जाने कैसी आजादी का सवाल हो रहा।

जीते जी माॅ-बाप को पानी न दिया कभी
खुदगजॆ आशियाॅ मगर अब श्राद्ध हो रहा।

मासूम के साथ दरिन्दगी बता कैसे लिखें
पत्थर दिल कलेजा अब आम हो रहा।

काबिल"उस्ताद"की कौन पहचान करे
आरक्षित गधों का तो इस्तेकबाल हो रहा।