बनारस की मस्ती अपनी गायकी में गजब घोली।
ठुमरी,कजरी,टप्पा,चैती में"अप्पा" क्या खूब बोलीं।।
संगीत की विरासत लिए सारे जहाॅ खुश्बू बिखेरी।
अपनी जिंदादिली,फकीराना तबीयत से खूब हंसी फेरी।।
वो गातीं तो महफिल खुद पर खूब रश्क करती।
बनारसी घराने की अनमोल शैली हर दिल बसती।।
पान बीड़े सजे सुखॆ होंठों से जो मधु अलाप लेतीं।
नर,गंधवॆ,देव सभी को मंत्रमुग्ध पल में कर देतीं।
वो बिछुड़ गयीं हमसे भला कौन घड़ी विश्वा करेगी।
सुरमहिषी गिरिजादेवी की वाणी क्या युग-युग भूल सकेगी।।
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