समग्र राष्ट्र की सुषुप्त चेतना को पुरजोर अंततः
देदीप्यमान एक योगी ने झंझोड़ जाग्रत किया।
सरयू तट पुनीत,पुरातन बसी नगरी एक बार पुनः
पुनर्जागरण का अविस्मरणीय शंखनाद किया।
प्रतीक्षारत,व्याकुल युगों से समस्त प्रजाजन हितार्थ
जनप्रिय श्रीराम को वनवास से सादर बुला लिया।
कलियुग,घोर-तमसाच्छादित वातावरण फिर इस तरह
सभ्यता,संस्कृति,संस्कार का सब जन दृढआश्रय दिया।
कीर्तिमान गढ़ती प्रखर पंक्तिबद्ध दीपज्योति मध्य
त्रेता रामराज की पुनर्प्रतिष्ठा का अटूट संकल्प लिया।
सज गयी नववधू सी प्रतापी रघुकुल सूर्यवंशी नगरी
अद्भुत,आह्लाद,सद्भाव रंग खिला उर "नलिन"सभी।
अभ्युदय होगा अब कहोभला किंचित प्रश्न रहा कहाँ
जन-जन होगा भाग्योदय भला संशय अब जरा कहाँ।
नूतन बयार जो बहने लगी इंद्रप्रस्थसे अब दस दिशा
सबका साथ-सबका विकास होगा चरितार्थ शीघ्र यहाँ।
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