चाँद,तारे लगा लेने से झंडे को बुलंदी नहीं मिलती
ग़ैरत,इमान,भाईचारा हो अगर हार नहीं मिलती।
तू लूट,आतंक का अक्स बन कर बस रह गया
तोहमत दूसरों पर थोपने से राह नहीं मिलती।
जाने किस ज़माने में बाबा आदम के रह रहा तू
तेरे जैसे कमज़र्फ़,धूर्त की मिसाल नहीं मिलती।
हम चाँद पर जा के आ भी गए बड़े एहतराम से
जमीं पर रहने की तुझे सलाहियत नहीं मिलती।
पाकिस्तान को तूने तो बना दिया आतंकिस्तान
चोरी,सीनाजोरी की मक्कारी ऐसी नहीं मिलती।
"उस्ताद"अभी भी वक्त पड़ा है अमन चैन का
हमारी काट यूँ कहीं दुश्मनी में नहीं मिलती।
No comments:
Post a Comment