Monday 30 October 2017

"उस्ताद"राम के भरोसे हम नाव खेते हुए

रदीफ,काफिया न मिलाओ जिन्दगी जीते हुए
हॅसो,हॅसाओ बस सुकून से जीते हुए।

कड़ी धूप हो,बरसात या हो ठिठुरन बड़ी
मौज में चलते रहो हर कदम बढते हुए।

जो है जैसा वैसा ही रहने दो उसके हाल में
खुदा ने सोचा तो होगा उसको गढते हुए।

बिन्दास,बेझिझक जिन्दगी के कैनवास में
भर दो हकीकते रंग ख्वाब हर सजाते हुए।

अब इसलाह क्या कब्र में पाॅव रखते हुए
भरोसे राम के हम तो नाव खेते हुए।

देखा जो अक्स एक रोज खुद का आईने में
"उस्ताद" पगला गया कलाम लिखते हुए।

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