चमक रहे बरक़रार,ये ध्यान तो बहुत है अगले को
जमीं दरकती है पाँव तले,फ़र्क कहाँ पर अगले को।
अपने अहम में दिखता है डूबा आज सभी का किरदार
जलती जा रही रस्सी मगर कौन समझाए अगले को।
तृष्णा उकसाती है सदा लूट,आतंक से जीवन बसर को
भला सुख,शांति एक पल फिर मिले कैसे बता अगले को।
"उस्ताद" बन जो उम्र भर पिलाते रहे ज़हर सारे जहाँ को
बखूबी वही मज़लूम देगा सबक एक वक़्त अगले को।
जमीं दरकती है पाँव तले,फ़र्क कहाँ पर अगले को।
अपने अहम में दिखता है डूबा आज सभी का किरदार
जलती जा रही रस्सी मगर कौन समझाए अगले को।
तृष्णा उकसाती है सदा लूट,आतंक से जीवन बसर को
भला सुख,शांति एक पल फिर मिले कैसे बता अगले को।
"उस्ताद" बन जो उम्र भर पिलाते रहे ज़हर सारे जहाँ को
बखूबी वही मज़लूम देगा सबक एक वक़्त अगले को।
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