राम- तुम्हारे गुन गाऊँ
सदा तुम्हें एकमात्र पुकारूँ।
साँस-साँस की हर लय में
तेरा सुन्दर गीत उचारुं।
जाने कितने पुण्यों से
तेरा ये प्रसाद मिला है।
जनम-जनम,भटक-भटक
मुझको मानव आकर मिला है।
तो व्यर्थ इसे क्यों जाने दूँ
तेरे पीछे क्यों न आऊँ।
जैसे-तैसे तुझे रिझा कर
जीवन अपना सफल बनाऊँ।
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