ता थेई थेई तत,ता थेई थेई तत घुंघरू बोले
नाच रही कमनीय,सुर ताल लयबद्ध सरिता।
पवन हो गयी मदहोश,सुझा कुछ न
उच्छवास ले भारी,झूमे ऐसी वनिता।
गगन, वसुंधरा मगन तब तो एक हो गए
चक्कर पर चक्कर, थिरका अंग ललिता।
भाव रसीला,सूक्ष्म नयन को लगता प्यारा
तीव्र-मंद,नख-शिख संचालन सबको भाता।
नृत्य-सम्राज्ञी,अप्रतिम सितारा देवी का
कला-जगत नत हो अभिनन्दन करता।