जयति जय-जय अग्रणीय,श्री रामदूत अनिलात्मज
वंदन तुम्हें शतकोटि करें हम,भक्तवृंद हे पवनात्मज।
रक्ताभ देह,सुघठित अतुल,वीर,प्रचंड तुम बलशाली
भय प्रकम्पित,दुष्ट दैत्य सभी देख तुम्हें बजरंगबली।
अनन्य सेवक तुम तो सिय रामचन्द्र के,भूतो न भविष्यति
कृपा जिस पर करते,निर्विवाद मिलती उसको रामशरण गति।
अणिमा-गरिमा अष्टसिद्धि,नवनिधि न्योछावर तुम पर जाती
रामचरण रति पर छोड़ तुम्हें कहाँ है ऋद्धि-सिद्धि कुछ भाति।
केसरीनंदन चिरजीवी तुम,अर्जुन रथ ध्वजा सभाल, लाज बचायी
वैसे ही इस महासमर में मेरी रक्षा की जिम्मेंदारी,तुम पर आयी।
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