जय जय शिवशंकर ,जय नीलकंठेश्वर
तुम आदि देव ,तुम देवों के भी देव हो।
सब जन की बस एक पुकार पर तुम
कष्ट उबारते,बन भयंकर काल हो।
कर्पूर गौरं रूप तुम्हारा,हम सबको भाता
निश्छल ,पारदर्शी तुम तो पूरे भोले हो।
भुवनेश्वरी जगत की माता वाम विराजे
तुम स्वयं जगदीश्वर,जगतपिता हो।
भूत,पिशाच,नर,नाग,सकल देव ,सिद्ध सब
नित रटते नाम तुम्हारा,सबके तुम प्रिय हो।
काशी में इष्ट देव के नाम से सबको तारो
भवसागर के तुम "तारकेश्वर",प्रसिद्ध हो।
No comments:
Post a Comment