भीतर बाहर मन के कोने-कोने
उज्जवल, तू राम-राम रट। शुद्ध निर्मलता पाने
राम-राम रट रसना, तू राम-राम रट।
राम रतन को जिह्वा में धर कर
आलोकित कर ले सारा संसार
राम-राम.. . .
दिव्य चेतना आधार बना कर
तन मन प्रभु को अर्पित कर
राम-राम .......
सूर, चैतन्य, मीरा, तुलसी ने खुद को एकचित्त कर
नित ध्याया हरी को जैसे, तू भी ध्यान लगाया कर
राम-राम ……।
उज्जवल, तू राम-राम रट। शुद्ध निर्मलता पाने
राम-राम रट रसना, तू राम-राम रट।
राम रतन को जिह्वा में धर कर
आलोकित कर ले सारा संसार
राम-राम.. . .
दिव्य चेतना आधार बना कर
तन मन प्रभु को अर्पित कर
राम-राम .......
सूर, चैतन्य, मीरा, तुलसी ने खुद को एकचित्त कर
नित ध्याया हरी को जैसे, तू भी ध्यान लगाया कर
राम-राम ……।
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