रुबाईयाॅ,शेर ओ नज्म सभी साथ मेरे ही दफन कर देना।
हैं जो तोहफे महबूब की ये मुंह दिखाई संलग्न कर देना।।
वो तो आया नहीं कभी,रूठा रहा ता उम्र मुझसे।
कबूल करे मुझे यार मेरा,तुम ये निवेदन कर देना।। वादाखिलाफी पर उसकी नाराज हूं नहीं जरा भी।
सुपुर्द ए खाक सजा मुझे सिंगार दुल्हन कर देना।।
लगी है लौ अब तो बस उसी छैल छबीले से मेरी।
श्मशान को मदहोश अरदास से वृंदावन कर देना।।
न माने फिर भी अगर सांवरा तो,बस ये काम करना।
नाम जाकर मेरे "उस्ताद" के,यार सम्मन कर देना।।
नलिन "उस्ताद"
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