हंसने को तो हंसता ही रहता हूं अक्सर यूँ ही खामखां में।
मन होता है यार रोने का भी कभी मगर यूं ही खामखां में।
सांसे चल रही हैं,उम्मीदों का भी पल्लू कहां छूटा है।
लगता है मुसाफिर भटक गया पर यूं ही खामखां में।।
वो आएगा नहीं मिलने मुझसे ये वादा करके गया है।
जिद पर अड़ी है पर दिल की लहर यूं ही खामखां में।। उसे मेरी जरूरत नहीं,मुझे भी परवाह कहाँ उसकी।
रहते हैं हर घड़ी अब तो साथ मगर यूं ही खामखां मेें।। रूबरू हूं अगर खुद से तो बस एक आईने की बदौलत।
देखता हूं खुद को तो टूटता है अक्सर यूँ ही खामखां में।।
यूँ तो करता है "उस्ताद" हर काम तू ही जमाने भर के। मुगालते में जाने क्यों फिर हर सफर यूं ही खामखां में।।
नलिन "उस्ताद"
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