अश्क दिखा कर छलकाना औ पोछना नजाकत से।
जमाने का दस्तूर है नया बिकता जो बड़ी मेहनत से।।
हर रोज तो देखते हो दानिशमंद तमाशा अपनी नादानी का।
लेते रहते हो बन कर बड़े मासूम फिर भी पंगा कुदरत से।।
दौड़ते थक गए हो अगर अपनी मंजिल को पाने में तुम।
ठहरो सब्र करो मिल जायेगी बस वो भी थोड़ी इबादत से।।
लगाना इल्ज़ाम तो झूठे फितरत में है दुनिया के।
बेखौफ बढ़ते रहना,न डरना कभी भी तोहमत से।।
हो अगर जिंदगी में अमन चैन की असल चाहत।
प्यार ही को बस तरजीह देना यार तुम दौलत से।।
समझ न पाओगे तुम कभी भी रस्मो-रिवाज इस दुनिया के।
"उस्ताद" सफेद बालों की कसम उबरो अब तो जहालत से।।
नलिन "उस्ताद "
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