बाॅह भरना जो चाहा,तो आकाश वो हो गया। जिस्म से रूह का सफर,किस अंजाम हो गया।
शोख आंखें बन जलतरंग,गुनगुनाने जब लगीं।
बगैर लब जुंबिश दिए,कहना तो सब हो गया।।
लिखी गज़ल मगर,तुम उसे बेईमानी ही कहो। आफताब हुस्न तो,गूंगे के गुड़ सा हो गया।।
आईना बोलता है झूठ,आज ये पता हुआ।
दिल ए अक़्स जब,आंखों को रुबरु हो गया।।
सिमट गईं लो दूरियाॅ,अब जमीं आकाश की।
झील में जब उतर चांद,नशा तारी हो गया।।
पुरानी जाने कितनी खुमारी,जनमों की बाकी रही।
उतार कागज कलाम,बराबर कुछ हिसाब हो गया।।
उसका एहसास हर घड़ी,बनके खुशबू समेटे है मुझे।
बगैर जान-पहचान के असर क्या गजब हो गया।।
कायनात उसकी लिखी ग़ज़ल एक ही जो पढ़ सका।
"उस्ताद "बैठे-बिठाए हर दिल अजीज हो गया।।
@नलिन #उस्ताद
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