मेरे दामन में संग भी क्या खूब बरसते रहे। बुत हो गया अब तो सब मुझे पूजते रहे।।
अल्हड़ बादल के मिजाज क्या भला कहें हम।
गरजे कहीं तो कहीं और जाकर हैं बरसते रहे।
मुहब्बत का यही दस्तूर है तो यूं ही सही।
तुम जफा तो हम वफा ही करते रहे।।
वैसे तो वो बहुत चाहते हैं मुझको।
मगर करीब आए तो बस मुझे देखते रहे।।
शहर में नाचते मोर तब भला कैसे दिखें। आबोहवा जब सहम बादल बरसते रहे।।
दिलों में रिश्तो की बेल फलती-फूलती बढे। एतबार की जमीन अगर आशिकी बरसती रहे।।
जिसको चाहे उसको वो वैसा नाच नचा दे।
"उस्ताद"क्या मजाल जो खुदा पर बरसते रहे।।
@नलिन #उस्ताद
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