Thursday 27 August 2015

349 - राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।




राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा जीवन राम-राम,मेरा मरना राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा विश्वास राम-राम,मेरा अविश्वास राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा अनुराग राम-राम,मेरा विराग राम-राम।। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा क्रन्दन राम-राम,मेरा हास्य राम-राम।। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा मौन राम-राम,मेरा वाक राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा बल राम-राम ,मेरा अबल राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा सत्य राम-राम,मेरा असत्य राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा जयगान राम-राम,मेरा अपमान राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
मेरा ज्ञान राम-राम,मेरा अज्ञान राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम।
मेरा सर्वस्व राम-राम ,मेरा शून्य राम-राम।।
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 
राम-राम,जय राम-राम,राम-राम,जय राम-राम। 

348 - घर ओ मेरे प्यारे घर तू तो है सबसे न्यारा घर।



घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर। 
कितना प्यार करता हूँ -मैं तुझे 
और तू भी तो करता है -प्यार मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
एक दूजे से हो गया है 
प्यार ही प्यार-तुझे मुझे। 
दरअसल हम बनें ही हैं 
कि प्यार करे तू मुझे 
और में करूँ प्यार तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
बाँहों में बाहें डाल के मैं 
चलता हूँ  तुझे 
तू भी तो अपनी बाँहों में 
झूलता है मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
तू कितना न्यारा और सजीला है 
ओ मेरे दिलदार,घर मेरे 
देखने आते हैं सब तुझे 
जोहता है बाट तू मुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
जाने कितने सपने दिखाए हैं 
तेरी आँखों ने मुझे 
हकीकत के रंग से सजे 
सब न्योछावर हैं तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।
"नलिन" सी खिलती जिन्दगी मेरी 
भेंट है तेरी मुझे 
उपकृत जीवन भर हूँ सदा तेरा 
और क्या कहूँ भला तुझे। 
घर ओ मेरे प्यारे घर 
तू तो है सबसे न्यारा घर।

Wednesday 26 August 2015

347 -राम- तुम्हारे गुन गाऊँ


राम- तुम्हारे गुन गाऊँ 
सदा तुम्हें एकमात्र पुकारूँ। 
साँस-साँस की हर लय में 
तेरा सुन्दर गीत उचारुं। 
जाने कितने पुण्यों से 
तेरा ये प्रसाद मिला है। 
जनम-जनम,भटक-भटक 
मुझको मानव आकर मिला है। 
तो व्यर्थ इसे क्यों जाने दूँ 
तेरे पीछे क्यों न आऊँ। 
जैसे-तैसे तुझे रिझा कर 
जीवन अपना सफल बनाऊँ। 

Monday 24 August 2015

346 -राम तो अब करो कुछ ऐसा


राम सोचता हूँ मैं  
रो कर तुम्हें अब न पुकारूँ। 
अश्रु वेदना भरे घट से 
चरंण तुम्हारे अब न पखारूँ। 
तुम तो हो आनंद सागर 
विश्व के उदार-नायक।
जी को तुम्हारे न जलाऊँ 
खुद हँसू तुम्हें हँसाऊँ । 
अटपटे रस भरे बोल से 
तुम्हें अब मैं सदा रिझाऊँ। 
अश्रु कण दरअसल नमकीन हैं 
पर तुमको पसंद मधु अर्क है। 
पर करूँ क्या भगवन 
मैं भी तो विवश हूँ। 
मुझे तो तुमसे मिली 
यही कृपापूर्ण सौगात है। 
राम तो अब करो कुछ ऐसा 
तुम्हारा भी बन जाए काम। 
मेरा भी छूटे हर घडी का रोना 
खिल जाए "नलिन" मुख सलोना। 
मेरे दुखों के उबलते सैलाब में 
कृपा का अपनी मधु उड़ेलो। 
चाशनी एक तार की बने जब 
पंच तत्वी  देह तब मेरी डुबो दो। 
इस तरह से रोम-रोम में 
पंचामृत का संचार होगा। 
नर जीवन जो दिया तुमने
 उसका वास्तविक उद्धार होगा।   
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Sunday 23 August 2015

345 -"तत्वमसि"



रंग अनूठा इस दुनिया का प्यारा 
हम को हर रोज निमंत्रण  देता है।
लेकिन इसके जाल जो भी फंसता 
वो जीवन भर बस रोता ही रहता है। 

जीवन की इस आपाधापी में 
मन तो बहुत कलपता है। 
हाँ जब अपने से नैन मिलाता 
तब वो खिलने लगता है। 

जीवन घट जब भरने लगता है 
स्वर भी बदलने लगता है।
जब जीवन घट पूरा भर जाता  
स्वर मौन हुआ मिट जाता है। 

जनम-जनम की रगड़ निखरता 
मिटटी से फिर कंचन होता है। 
उसमें तुझमें भेद कहाँ कुछ 
#"तत्वमसि" तू हो जाता है।
(#तू वही हो जाता है )

Thursday 20 August 2015

कैंची बाबा का भंडारा 





कैंची में बाबा का भंडारा
चल रहा, जोर-शोर से आज।
जैसा कि हर बरस इसी दिन
लगता है ये हर बार।
ऋद्धि-सिद्धि की करनी का
कौन कर सके गुणगान
बाबा जिसको यश दिलवाते
जग में वो पाता सम्मान।
भक्तों का ताँता लगता है
कैंची धाम में आज।
जैसा भाव ले यहाँ जो आता
वैसा फल पाता तत्काल।
मालपुआ प्रसाद में पाकर
तन-मन तृप्त, करे अपार।
जन्म-जन्म के बंधन कटते                                                                        
 ऐसा सब जन का विश्वास।
बाबा अदृश्य रूप विचरते
गली-गली हर धाम।
श्रद्धा- विश्वास यदि हो तुमको
दर्शन होते हाथों-हाथ।
कभी कृपा-स्वरुप बन स्वयं ही
देखो करते हमें निहाल।
बाबा के श्री चरण-प्रताप से
कटता सारा माया-जाल।
आओ फिर छोड़ सभी कुछ
कर लें बाबा का गुणगान।
जीवन सफल हो जाए अपना
पाएं जो हम ऐसा वरदान।

Wednesday 19 August 2015

344 -राम-राम बस एक राम



राम तुम्हारा उपकार
दर्द का यह सैलाब।
कराता है तुम्हारा ही स्मरण
छन-छन,प्रतिपल।
कुछ और नहीं सूझता
अन्धकार को जो दे विराम।
केवल एक तुम्हारा ही नाम
राम-राम बस एक राम।
यही एक आधार
मुझमें भरता आत्मविश्वास।
घटाटोप अन्धकार भी हटेगा
मेरा रूठा मीत मिलेगा। 
भानु शिरोमणि अपने प्रकाश से
उर "नलिन" खिला देगा।
हर संताप मिटा देगा
रोम-रोम महका देगा।
 तेरी अमृत सुवास से
अक्षयवट बनेगा जीवन।
बहेगा-निर्मल आनंद
हर पल,हर छन निरन्तर। 

Tuesday 18 August 2015

343 - राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर



राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर 
किंकर्तव्यविमूढ़ बन कर। 
स्थितियां परिस्तिथियाँ अधिक क्लिष्ट 
जैसी थीं अर्जुन के वक्त पर। 
तो भला क्यों करते हो विलम्ब 
आओ चक्षु खोलने श्री कृष्ण बन कर। 
यद्यपि नहीं रहा कभी पुरुषार्थ वैसा 
जो हुआ हो विस्मृत आ इस पथ पर। 
पर तुम तो ठहरे वही अनित्य करुण मीत 
सौगंध बंधे-अरी मर्दन,सदैव प्रस्तुत हो कर। 
जीव की एक व्याकुल पुकार पर 
ह्रदय की गहरी एक आह पर। 
तो आओ शीघ्र अत्ति शीघ्र नाथ,सखा 
क्लीवता मेरी,जग उपहास करेगा तुम पर। 

Monday 17 August 2015

342 - मन-मंदिर को तिरंगा रंगा दें



स्वतंत्रता का जयघोष जो गगन में हो रहा आज उल्लास से 
आओ मिल कर हम सभी उन स्वरों को अब एक आकार दें। 
जाने कितने वर्ष बीत गए राह पथरीली पर चलते हुए मगर 
आओ आज मिल कर हम सभी डगर प्यारी फूलों की बना दें। 
वृद्ध,युवा,बाल जाति-पाति के भेद सब छोड़ समवेत उठकर
आओ मिल कर हम सभी परस्पर नया एक जोश जगा दें।
दुनिया जो लिख रही गाथा नित नयी ऊंचाई की हर दिशा में 
आओ मिल कर हम सभी देश अपना उसमें अग्रणी बना दें। 
प्यार,मोहब्बत,भाईचारा ये तो हमने हर रोज घुट्टी में है पीया 
आओ मिल कर हम सभी इस संस्कार से धरा को स्वर्ग बना दें।
रंग तो बहुत हसीन हैं इस दुनिया में इन्द्रधनुष से फैले हुए   
आओ मिल कर हम सभी मन-मंदिर को बस तिरंगा रंगा दें। 

Friday 14 August 2015

341 - प्रार्थना तो बहुत हुई

प्रार्थना तो बहुत हुई
अब कृपा का वरदान दीजिये।
मेरे प्रभु श्रीराम अब तो
चरणों में स्थान दीजिये।
मैं दीन,हीन मलिन मति
दुर्भाग्य को मिटाइये।
भग्न ह्रदय,सुरहीन गीत
अब और न  भटकाइये।
अतृप्त "नलिन" नैन बस कर
मेरे भाग्य तो सवारिये। 

Tuesday 11 August 2015

340 - राम-रमैया, नाच-नचैया,ता-ता थैया



राम-रमैया 
नाच-नचैया 
ता-ता थैया
ता-ता थैया।
जिसको जैसा नाच नचाए
 वैसा ही वो नाचे भइया। 
राम-रमैया  ....... 
भेद तो अपना वो ही जाने
 ऐसा नटखट बाल कन्हैया। 
राम-रमैया   …… 
कभी पकड़ कर अंग लगाये 
छन में ओझल,मेरी दइया। 
राम-रमैया   …… 
आँख मिचली बस अब और नहीं अब
 तुझको सौं है,पकडूँ मैं पैयाँ। 
राम-रमैया   ……
तेरी मोहक,बांकी चितवन पर 
पल-पल मैं नित लेउँ बलैयां। 
राम-रमैया 
नाच-नचैया 
ता-ता थैया
ता-ता थैया।

















Friday 7 August 2015

339 - राम तुम मनमीत बनो

राम तुम मनमीत बनो
मेरी अब तुम प्रीत बनो।
जीवन की हर लय में
तुम मेरा संगीत बनो।
चाहे कुछ विषाद रहे
या मन उल्लास रहे।
सांसों में  तुम प्राण भरो
जीवन में सत्यार्थ भरो।
हर छन,हर पथ साथ रहो
ध्यान में मेरे सदा रहो।
उर का दृढ विश्वास बनो
मेरे तुम मनमीत बनो।

Thursday 6 August 2015

338 -जमीं दरकती है पाँव तले

चमक रहे बरक़रार,ये ध्यान तो बहुत है अगले को
जमीं दरकती है पाँव तले,फ़र्क कहाँ पर अगले को।

अपने अहम में दिखता है डूबा आज सभी का किरदार
जलती जा रही रस्सी मगर कौन समझाए अगले को।

तृष्णा उकसाती है सदा लूट,आतंक से जीवन बसर को
भला सुख,शांति एक पल फिर मिले कैसे बता अगले को।

"उस्ताद" बन जो उम्र भर पिलाते रहे ज़हर सारे जहाँ को
 बखूबी वही मज़लूम  देगा सबक एक वक़्त अगले को। 

Wednesday 5 August 2015

337 - आलोक में हे नाथ अपने



आलोक  में हे नाथ अपने,हमको शरण अब दीजिये 
तमसाच्छादित इस नरक से,शीघ्र दूर अब कीजिये।
हमने ही हाथ से खुद ही,पट उर के हैं बंद कर लिए   
 बल,शील,बुद्धि दे हमें आप,थोड़ी मदद तो कीजिए। 
बुद्धि-लाघव जगत के व्यापार का,है कहाँ कुछ भी पता 
इस लिए जरा मतिमूढ़ पर,वरद-हस्त अपना कीजिए।
जन्म-जन्मों से श्वासोच्छवास का,सिलसिला ही चल रहा 
कभी मुरली की टेर से,राधा सा मोहित हमें कर लीजिये।
मधु-मिलन की हो हर चाह पूरी,स्वप्न मैंने जो संजोयी  
काल-ग्रह गणित की चाल ऐसी,अनुकूल श्रीहरि कीजिए।
खिलता रहे जग-पंक में सदा,निर्मल-सरल रूप में 
नाथ ऐसी दिव्य दृष्टि,अपने "नलिन" पर कीजिए।     

Monday 3 August 2015

336 -राम की प्रार्थना



राम की प्रार्थना 
निरंतर आराधना। 
और भला क्या काम 
राम-राम उचारना। 
मन कपि चंचल,अरि  
विषय वासना वृक्ष की 
जड़-लताओं से निरंतर 
खेल को व्याकुल दिखे। 
पर भटकाव हो तो हो 
भीतर चले बस प्रार्थना
राम की प्रार्थना। 
वो जब उबारे तब काम बने 
जीवन को अवलंब मिले। 
वर्ना तो बस 
कूदना,फादना।
 तिक्त  फल-फूल खा कर
चीखना,चिल्लाना 
नोचना,खसोटना। 
इन सबसे बस एक ही 
बचने की बूटी  
संजीवनी है प्रार्थना। 
राम की प्रार्थना 
निरंतर  आराधना।  

Sunday 2 August 2015

335 - "उस्ताद" आगे डर है......

मसीहा मानकर खुदा का दर्ज़ा देते रहे हम-आप आए
देख वही डॉक्टर यमराज सा,मरीज़ खुद ही मर न जाए।
आँखों में पट्टी बांध हमारे छद्मवेशी बुद्धिजीवी महान
अब फोड़ खुद दोनों आँख अपनी धृतराष्ट्र न हो जाए।
मीडिया जो हाथ में दोनों लड्डू लिए है इतराती सिरफिरी
सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही हर रोज़ मुक़दमे न लड़ जाए।
कहते हैं वकील वो कील जो गड़ कर उखड़ती नहीं कभी
अब ताबूत बना समाज को खुद आखिरी ही न बन जाए।
नेताओं के किस्से तो कौन गिने उँगलियों में भला आज
आस्तीन के दुमुहां सांप सा कहीं और मशहूर न हो जाए।
पुलिस,प्रशासन तो क्या कहें पहले से हमाम में नंगे ठहरे
भविष्य में इनका न कहीं खुले-आम जंगलराज हो जाए।
"उस्ताद" आगे डर है बहुत हालात कुछ ये न हो जाए
किसी आतंकी को ही "भारत-रत्न" की मांग न हो जाए।  

Saturday 1 August 2015

334 -राम रटन कर ले मनवा



राम रटन कर ले मनवा 
राम रटन कर ले। 
जीवन घट जाने कब रीते 
राम सुधा रस पी ले। 
साँझ सकारे,भोर,मध्य में 
सुधि राम की ले ले। 
खाते-पीते,हँसते-रोते 
ह्रदय ओट तू कर ले। 
जैसा मन भाव बसे बस 
राम रूप तू लखि ले। 
कुछ न सोच पागल मनवा 
राम-राम बस कर ले। 
उलटे-सीधे,मन-बेमन से
राम चरण रति को जी ले। 
दग्ध-तिक्त जीवन विष के बदले 
राम नाम पर मर ले। 
राम रटन कर ले मनवा 
राम रटन कर ले।