साईं अब तो खोलो,कृपा के द्वार तुम अपने
सूरज सा उड़ेलो प्रकाश,उर-जन में अपने।
षड- रिपु से क्लांत हो गए हैं, "नलिन-दल" सारे
देखें जब श्री- नख -ज्योति तो,खिल जाएंगे सारे।
वसंत का सा हर दिन,जीवन में मधुमास रहे
पीत,पोपले,मुरझाये मुख में भी,मुस्कान रहे।
हर तरफ छाए यूँ तो,बस एक जलवे तेरे
दीदार करुँ जब आ कर खोले,नैन तू मेरे।
"तारकेश" तुम ही तो हो तारनहार हम सबके
रंग दो अपने श्याम रंग में,जल्दी से अब आके।
No comments:
Post a Comment