आज प्रकृति में छा गया,एक अजब उल्लास।
दसों दिशा, नृत्य करता आ गया मधुमास।
हरी मखमली दूब का,धारण कर मोहक लिबास
धरा का महका अंग-अंग,लिए अदभुत प्रभास।
नील-आकाश,श्वेत मेघ उड़ते - विचरते
संग पतंग थामे,बालवृंद किलोल करते।
उपवन महके,मन चहके,पंछी कलरव करते
तितली,भृंग,जड़-जीव सभी,मद में हुलसाते।
रतिपति रचि -रचि,भोग-विलास नित करते
शिव संग ध्यान मगन बस कुछ साधक बचते।
"तारकेश"तुम तारणहार,जगतपति हम सबके
तेरे चरणों की मधु के आगे,सब रस पड़ते फीके।
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