काल के कपाल पर पढ़ कर भी स्पष्ट अंकित लेख
ब्रह्मा की चेतावनी को समझता रहा बच्चों का लेख।
ऐसे महाभिमानी दसशीश को सोचो तो तुम जरा
कौन समझाए,चाटुकारों से दरबार जिसका भरा।
वैसे कहो चेताया किस-किस ने नहीं हर बार उसे
सुत,प्रिया,बंधु- बांधव और पिता ने सौ बार उसे।
और तो और हनुमान ने स्वर्णनगरी को जलाकर
क्या नहीं दिया सन्देश ? मूढ़ को झकझोर कर।
पर वो कहाँ माना खुद राम ने भी जब चेताया
भेज अंगद सा दूत अपना प्रीत का हाथ बढ़ाया।
वो तो खुद रहा जिम्मेदार,अपनी मौत का
तो व्यर्थ क्यों शोक करे,कोई भला उसका।
मगर त्रेता से चली यह कहानी कहाँ ख़त्म हो रही
कलयुग में तो यह बीमारी बड़ी ही आम हो रही।
अब तो हर कोई आदमी रावण को अंगूठा दिखा रहा
छल-कपट से अपने अहम को स्वाभिमान बता रहा।
जिसने उसे ऊँचा मुकाम,धन,पद नाम दिलाया
उसी को उसने हर बार बलि का बकरा बनाया।
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