राम कृपानिधान
तुम जगत आधार।
कब सुनोगे व्याकुल पुकार
विकल तो अब हुए
मेरे तन,मन प्राण।
हर छन ,हर पल काटता
बनाता मुझे बेहाल।
किंकर्तव्यविमूढ़ आज
कैसे करुँ भविष्य़ निर्माण।
सोचो न ,करो अब
शीघ्र तुम नव प्रभात।
दे दो कृपा का
मुझे तुम वरदान।
में अकिंचन क्या दू
सिवा एक प्रणाम।
ह्रदय घट का
भयभीत ,कापंता
नन्हा उपहार।
स्वीकार हो यदि तो
और भी करुँ अर्पण
अवगुणों का विपुल भंडार।
तुम जगत आधार।
कब सुनोगे व्याकुल पुकार
विकल तो अब हुए
मेरे तन,मन प्राण।
हर छन ,हर पल काटता
बनाता मुझे बेहाल।
किंकर्तव्यविमूढ़ आज
कैसे करुँ भविष्य़ निर्माण।
सोचो न ,करो अब
शीघ्र तुम नव प्रभात।
दे दो कृपा का
मुझे तुम वरदान।
में अकिंचन क्या दू
सिवा एक प्रणाम।
ह्रदय घट का
भयभीत ,कापंता
नन्हा उपहार।
स्वीकार हो यदि तो
और भी करुँ अर्पण
अवगुणों का विपुल भंडार।
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