बगैर तल्खी साफगोई से करनी हर बात अच्छी है।
कम से कम शीशे सी आर-पार साफ तो रहती है।।
कौन किसको समझाएगा भला इस नए जमाने में।
दलीलें जब बच्चे की बड़े-बड़ों के कान काटती है।।
मौसम में ठिठुरन तो थी अब कोहरा भी देख बढ़ने लगा।
जाम खाली भर दे जरा ए साकी ये तबीयत बिगड़ती है।।
हर झोंके से हो बेखौफ हवा में परिंदे उड़ते दिख रहे।
हमारी तो बस दो कदम चढ़ने पर ही सांस फूलती है।।
बेवजह अक्सर बदनाम किए जाते हैं "उस्ताद" सभी।
बगैर देखे अपना-पराया कलम जो इनकी चलती है।।
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