कुछ भी कहो फिजा तो बदलने लगी है।
धुंध जो छाई थी चौतरफा छंटने लगी है।।
हर तरफ छाया था घना अंधेरा जो एक दौर से।
कम से कम अब रोशनी दस्तक तो देने लगी है।।
निजाम ए तख्त जब से बदला है कसम से।
सुदूर मैली कुचली बस्ती भी संवरने लगी है।।
ऐसा नहीं है कि दूध के धुले ही हैं यहाँ सब कोई।
मगर जो थी कभी अन्धेरगर्दी वो मिटने लगी है।।
लब खिलेंगे "नलिन" से सबके,गंगा मोहब्बत की बह कर रहेगी।
कहीं न कहीं पुरजोर उम्मीद,दिलों में "उस्ताद" ये खिलने लगी है।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
No comments:
Post a Comment