लोग जब पत्थर बांध छाती पर तैर रहे।
नंगे पांव चलना भी हमें नागवार गुजरे।।
भीतर झांक कर करें खुद से कैसे गुफ्तगू।
देखने से फुर्सत कहाँ हमें दुनिया के मुजरे।।
परत दर परत पहन नकाब प्याज के छिलकों की मानिंद।
रिश्ते टिकें नहीं तो भला ताज्जुब कोई कैसे किया करे।।
असल,नकल में बताए कोई कैसे फर्क रत्तीभर का।
कांच ही जब बाजार में हीरे सा मुनव्वर* बिकने लगे।। *चमकीला/रौशन
उसका तसव्वुर* इतना भी आसान नहीं है "उस्ताद"। *कल्पना
दीदार फिर मयस्सर* हकीकत में भला हो तुझे कैसे।।*उपलब्ध
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