जिक्र होता है जब कभी मेरे कूचा ए यार का।
लबालब सारे जहाँ बहता है दरिया प्यार का।।
थाम लेता है जो हाथ सुबकते हुए देखकर।
बोझ सर से उतर जाता है हमारी हार का।।
कदम बढ़ाओ तो सही चौखट पर फासला मिट जाएगा। बड़ा मुलायमियत भरा फ़राख़दिल*है मेरे दिलदार का।। *उदार
रहेगी नशे की खुमारी महज बांसुरी की धुन पर।
होश फिर होगा ही नहीं तुमको उसके दीदार का।।
मौसम ए मिजाज पढ़ना उसका हँसी-ठठ्ठा नहीं है यारब।
हैरान है "उस्ताद" भी देख जलवा सांवले सरकार का।।
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