नवरात्र गीत -या देवी सर्वभुतेषू
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मैं लिखूं गीत तुम उसे सुरों में ढालकर,मोहक सजा दो।
गीत,सुरों पर फिर कोई उसे आवाज दे,गाकर सुना दो।
तालवाद्य विविध बजा फिर,जरा चार चांद उसमें लगा दो।
शिल्प-कला,नृत्य-मुद्रा और चित्र,तूलिका से भी उकेर दो। याने कि जितने भी हैं आयाम कला के,सब उसमें भर दो। खिलाने को फिर ये इंद्रधनुष,चलो उन्हें हर जगह उगा दो।
जिसके पास जो भी है हुनर उसको,मुक्त-हस्त दिखाने दो। निष्णात हो या न हो कोई भी तो,उसे झिझक मिटाने दो। चेतना का अनन्त विस्तार लिए,प्रेम का वितान फहरा दो।
सृष्टि का पराग-कोष मकरंद सा,उर में सबके खिला दो।।
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