Monday 4 July 2022

427:गजल

मौसम तो बेरौनकीन है,मगर दिल अपना भीगा पड़ा है।
मुत्तसिल* निगाहों से उसने अपनी,जब से हमें देखा है।।*लगातार 

गर्म थपेड़े लू के छूते हैं,महक बहारों की लिए अब तो।
जनाब मानो न चाहे,यकज़बा*प्यार में ऐसा ही होता है।।* सच्चे

तितलियां रंग बिरंगी,परिंदे चहचहाते मिल रहे हर तरफ। जबकि वो तो यार अभी,दो कदम ही मेरे साथ चला है।।

क्या खूब लुत्फे नशा,जेहन में हमारे आज छाया है।
देखा जो आईना,वो अक्स तो उसका ही दिखाता है।।

किसको उम्मीद थी कि राहे जिंदगी ये मुकाम आएगा। रहमोकरम "उस्ताद" का,जो उसका पैगाम आया है।।

नलिनतारकेश "उस्ताद "

No comments:

Post a Comment