दर्दे सैलाब जब गहरे भभकता बहुत है।
ग़ज़ल ए अशआर तब चमकता बहुत है।।
पता हैं सबको दर्द और जिंदगी के गहरे रिश्ते।
मगर फिर भी गजब ये ख्वाब बुनता बहुत है।।
कंक्रीट के जंगल में दड़बेनुमा घोंसलों से बाहर झांकते। कुलांचे मारते अतीत को आजकल मन तरसता बहुत है।।
जबसे सुनी है दिल ने तेरे कदमों के आने की आहट।
मान कर ये आहट है तेरी कसम से धड़कता बहुत है।।
जिस गली से न गुजरने की ताकीद हो जमाने की।
वहीं से जाने की जिद "उस्ताद" पकड़ता बहुत है।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
No comments:
Post a Comment