समय का क्या है वह तो बढ़ेगा ही।
दर्द गर बढ़ गया है तो घटेगा ही।।
चल पड़े जो कभी सफर में किसी।
कभी न कभी लक्ष्य सधेगा ही।।
टकराते रहो निडर चट्टानों से तुम।
किसी तरफ तो किनारा दिखेगा ही।।
सूरज की फितरत भी गजब की है
जो ढले तो हर हाल उगेगा ही।।
क़यामत की अदा है हुजूर के दर की।
जादू तो उसका एक रोज चढ़ेगा ही।।
"उस्ताद" शिद्दत से उसे चाहो।
इम्तिहां सही वो तो मिलेगा ही।।
No comments:
Post a Comment