ये चांद,तारों की ख्वाहिश से बता क्या हासिल।
आँखिर हाल-ए-दिल उसको अपना जता क्या हासिल।।
वह जो मगरूर है अपनी सत्ता के बल पर। उसे आईना दिखा नैतिकता क्या हासिल।।
रोपें जो पेड़ बबूल तो आम कैसे खाएं।
गए चूक अगर मौका तो पछता क्या हासिल।।
भटकते रहे ता उम्र मृगमारिचिका में।
अब भला दिल दिमाग को उकता क्या हासिल।।
माना तुम दौलत,शोहरत से हो पुख्ता।
पर गरीब,मजबूर को सता क्या हासिल।।
"उस्ताद" तुम भी रहे नादां के नादां ही।
की ना हो चाहे तुमने खता क्या हासिल।।
@नलिन #उस्ताद
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