मदन व्यस्त हो,मदिर नयन सब किलोल कर रहे।
नवल वसंत चहुं ओर देख सखी बौर झर रहे।।
कूक उठी बौराई फुनगी इठलाई है फिरती। वसंत बहार दिशा-दिशा पंचम सुर बिखर रहे।।
डहेलिया,गेंदा,पुष्प गुलाब चटक शुभ रंग खिलते।
मकरंद लूटने मधुकर सारे गली-गली में विचर रहे।।
उपवन-उपवन हरी दूब मखमल बन बिछी हुई।
ओस ठहर बदन पर बाहों में उसको भर रहे।।
स्वप्न अनगिनत इंद्रधनुषी हृदय आज संजो कर।
युगल प्रेमी नीड़ रचने पसार अपने पर रहे।।
गुलाबी नशा,मदहोश करती चल रही बयार। जादू चले अजब-गजब वसंत का जब असर रहे।
दीप बन तारे जगमगाए सुधाकर संग यामिनी में।
मृदुल निर्मल"नलिन"खिलखिलाते
जन-मन सरोवर रहे।।
@नलिन
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