यूँ तो हमारी हर साँस प्रभु कृपा का विलक्षण रूप और आधार है। पर हम इतना सूक्ष्म चिन्तन व्यवहार में कभी-कभार ही कर पाते हैं। अक्सर उसे भूले ही रहते हैं। जन्मदिन,विवाह,नौकरी या कुछ ऐसे ही अवसरों पर हम कुछ हद तक उसका स्मरण कर पाते हैं। तब हमें लगता है की प्रभु हम पर कृपालू है। अपने आप से वह हम पर मुक्तहस्त सदा ही कुछ न कुछ न्योछावर करता ही रहता है। पर अक्सर हम इस तथ्य को विस्मृत तो करे ही रहते हैं वहीँ इसके उलट हम उसके द्वारा हमारी उपेक्षा हो रही है यह आसानी से मान कर चलने लगते हैं। वह हमारे कष्ट,दुःख,पीड़ा,अभाव पर जानबूझ कर मुंह मोड़े बैठा है यही हमें लगता है।भक्त या पुत्रवत होने के नाते यह मीठा उलाहना तो चल भी सकता है पर हम तो सर्वज्ञ से ज्ञानी बन,दोषारोपण करते हैं उसे किसी न किसी रूप में कमअक्ल साबित करते चलते हैं तो उसी से अपेक्षा भी करते हैं कि वह हमारी बुद्धि के अनुसार स्थितियोँ को बदलाव लाने को प्रस्तुत रहेगा।
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